शनिवार, 31 मार्च 2012

मुझे लगता है आपको exposure की जरुरत है-एक अवसादग्रस्त बेरोजगार युवक की ज़िन्दगी में विश्वास भरने वाले शब्द

यही कोई पंद्रह वर्ष पहले की बात है जब श्रवण जी गर्ग  से पहली मुलाकात हुई थी.आईएएस परीक्षा की तैयारी करते हुए अनेक विषयों को विस्तार से पढ़ने का मौका मिला था. तैयारी के साथ-साथ ही यदा-कदा कुछ लेख नईदुनिया और नवभारत टाइम्स में प्रकाशित होते रहे थे. इसलिए दो बार साक्षात्कार तक पहुँचने के बाद भी अंततः आईएएस न बन पाने की स्थिति में पत्रकारिता को करिअर बनाना तय किया था.अवसाद की - सी स्थिति थी और अपने आप  को सिद्ध(prove ) करने की चुनौती भी .ऐसे में एक दिन सीधे श्रवण जी के दफ्तर (इंदौर स्थित भास्कर कार्यालय) पहुँच गया.भास्कर के सामने स्थित काम्प्लेक्स में बीएसएनएल के एसटीडी पीसीओ में बैठकर लिखा गया आवेदन श्रवण जी के सामने रखा तो उन्होंने उसे ध्यान से पढ़ा और कहा कि देखते हैं,आप बाद में संपर्क कर लीजिये.बाद में फोन पर संपर्क करने पर उन्होंने कहा आप उज्जैन से हैं तो वहीँ ब्यूरो चीफ विजयशंकर मेहता जी  से संपर्क कर लीजिये .मैंने साफ़ कहा कि मैं उज्जैन में नहीं बल्कि जहाँ से अखबार निकलता है,वहीँ काम करना चाहता हूँ.तब भास्कर के इंदौर संस्करण में ही उज्जैन,शाजापुर,देवास,रतलाम,मंदसौर,नीमच,खंडवा,खरगोन, बुरहानपुर, धार,झाबुआ और बडवानी शामिल थे और इंदौर में ही छपा करते थे. (वास्तव में मेरा मेहता जी से पुराना परिचय था बल्कि पारिवारिक सम्बन्ध थे लेकिन मैं अपने दम पर नौकरी पाने की इच्छा रखता था,सवाल अपने को prove करने का ही तो था इसलिए किसी तरह की सिफारिश नहीं चाहता था ) जब अनुकूल जवाब नहीं मिला तो मैंने श्रवण जी को याद दिलाया कि ठीक एक वर्ष पहले भी मैंने आवेदन भेजा था और आपने मुझे मिलने बुलाया था.मुझे चुनते हुए आपने ज्वाइन करने का भी कहा था लेकिन पारिवारिक कारणों से मैं ज्वाइन नहीं कर सका था.
(दरअसल इस मुलाकात के साल भर पहले मैं जब उनसे मिलने पहुंचा था तो श्रवण जी ने मुझसे अनुवाद की क्षमता के बारे में पूछा था तब मैंने कहा था कि यह काम मैंने किया नहीं है लेकिन कर सकता हूँ.तब श्रवण जी ने कहा कि हमें तो इस काम को तेज़ी से करने वाला दक्ष आदमी चाहिए.मैंने कहा था कि ज्यादा क्या कहूं,आप तो करवा कर देख लें.तब श्रवण जी ने अरुण आदित्य जी को  बुलाया और कहा कि अनुवाद करा लेवें और देखकर मुझे बताएं.उसी समय प्रीतिश नंदी के साप्ताहिक लेख का फेक्स आया था जो अरुणजी ने मुझे थमा दिया.मैं लेख का अनुवाद कर श्रवण जी के पास पहुंचा तब तक अरुण जी फोन पर उन्हें इस सम्बन्ध में बता चुके थे इसलिए श्रवण जी ने मुझे कहा था कि कब से ज्वाइन करेंगे मैंने उनसे दो दिन का समय माँगा और उज्जैन चला आया. उज्जैन में परिवार एकदम खिलाफ था.पिताजी और बड़े भाई ने कहा  कोई जरुरत नहीं है नौकरी करने की ,एक बार और आई.ए.एस.परीक्षा में उत्तीर्ण होने की कोशिश  करो,भाईसाहब ने तो यहाँ तक कहा कि पत्रकारिता में कुछ नहीं रखा,बनिए की दुकान है ये.दूर से ही अच्छी लगती है .आख़िरकार मैंने ज्वाइन नहीं किया) 
मेरे द्वारा याद दिलाये जाने पर श्रवण जी ने कहा ठीक है मैं अरुण से पूछता हूँ लेकिन फिर कुछ दिन कोई जवाब न आने पर मैं स्वयं इंदौर पहुँच गया.श्रवण जी से मिला.उन्होंने बायो -डाटा  देखा और मुझे बैठने को कहा.उसके बाद जो वार्तालाप हुआ.वह मेरी ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.उन्होंने कहा देखिये आमतौर पर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले दो ही काम करते हैं.या तो वे पत्रकारिता में आ जाते हैं या फिर अपना कोई काम शुरू करते है.पत्रकारिता ऐसा क्षेत्र है जिसमें कोई असफल  नहीं होता.सभी अपनी योग्यता के हिसाब से हासिल करते हैं.मुझे लगता है आपको exposure की जरुरत है इसलिए आपको एक मौका देना चाहिए.उनमें व्यक्तियों को पहचानने की अद्भुत क्षमता है और यही कारण है उन्होंने भास्कर के लिए बड़ी टीम बनायीं.यही नहीं,सेकंड  लाइन तैयार करने में भी वे हरदम आगे रहे.मेरी जानकारी में और ऐसा कोई संपादक नहीं है जिसने इतने सारे पत्रकार तैयार किये हों.खैर,मुझे अवसर देते हुए उन्होंने कहा-बताएं आपकी अपेक्षा क्या है.मैंने जवाब दिया -सर,मैं पत्रकारिता में नया दिखाई दे सकता हूँ लेकिन मुझे लगता है कि मैं इसके समानांतर चलता रहा हूँ.इसलिए मेरा आकलन  उसी तरह करिए.उन्होंने कहा ठीक है देखेंगे आपको क्या दे सकते है,आप बताएं कब से शुरू करेंगे.मैंने कहा-कल से ही और मैं घर पर बताये बगैर भास्कर में नौकरी करने लगा.उज्जैन से अप -डाउन  करता था.घरवालों  द्वारा   पूछे  जाने पर कुछ साफ़ नहीं बताता था लेकिन रोज़ रात को देर से घर पहुँचने पर परिवारजनों ने अनुमान लगाया और एक शाम भास्कर कार्यालय फोन कर कहा-महेश शर्मा से बात कराइए.इस तरह परिवार में बात उजागर हुई.श्रवण जी के माध्यम से पूर्णकालिक पत्रकारिता में मेरे प्रवेश की यही कहानी है.बीते १५ वर्षों में एक दिन भी मैं श्रवण जी की इस बात को नहीं भूला -मुझे लगता है आपको exposure  की जरुरत है- हरदम एक ही ख्याल रहा कि  मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूँ..  जैसी  कि मेरी अपेक्षा थी श्रवण जी ने हमेशा मेरा आकलन अनुभव के वर्षों को गिनकर नहीं बल्कि मेरे काम को देख कर किया...२००१ में भास्कर छोड़ने के बाद कुछ समय अमर उजाला,फिर दैनिक जागरण,ई-टीवी,एनडीटीवी और अब विगत सात वर्षों से इंडिया टुडे में काम करने के दौरान उन्हें अपना गुरु मानकर ही काम को बेहतर करने का प्रयास किया.हरदम यह बात स्मरण में रही कि सर देखेंगे तो क्या कहेंगे. काम को लेकर उनका जुनून,शीर्षक अथवा ले आउट को लेकर उनकी कवायद,उनका फोटो चयन सभी विलक्षण है.उनसे जो  सीखा है वह शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता फिर भी आगामी पोस्ट में कोशिश करूँगा.
आज भास्कर में उनकी अनुपस्थिति से मेरे द्वारा भास्कर छोड़ने के बाद भी महसूस किया जाता रहा जुड़ाव जैसे ख़त्म हो गया ...आगामी जीवन के लिए श्रवण जी को ढेरों शुभकामनाएँ.

2 टिप्‍पणियां:

  1. kahne likhane ko kuchh jyada nahi....pad kar aapke sanghrsho ki yad taza ho gai...suna hai dhiraj,dharm mitra oar nari....aapat kal parikhiy chari...hoy wahi jo ram rachi rakha....mujhe hi nahi pariwar ko aapko ias dhekhne ki bahut badi ikchha thi,lekin jeevan isi ka nam hai...hum jo chate hai wah nahi hota ,hota wah hai jo wah chata hai...is liy..nirasha nahi aani chahiy..humne prayash to kiya tha...bina prayas kiy safal asafal nahi hua ja sakta... mujhe mera vyatiktav ..aapke ias ke notes taiyar karte hua hi aapse mila hai...maine aapne pita ko jeevan mirtu ke bich sangharsh mai unhe bachate hua sanghrsh sikha hai..aapne asaflta oar prishthitiyo se...shrvan ji ko maine bhi pada hai...aap dono bahut achha likhte ho.aap dono hi aapne aapne star par great ho....abhi mai gulab kothari ko hi jyada padta rha hu...aap dono ko achhe bhavishya ki shubhkanay....

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